आज की भागदौड़ से भरी जिंदगी में सभी लोग किसी ने किसी बात लेकर स्ट्रेस में रहते हैं. पर्सनल लाइफ और वर्क से जुड़ी कई बातें स्ट्रेस का कारण बन सकती हैं. ज्यादातर लोग उस स्थिति को थोड़े समय में मैनेज कर लेते हैं. लेकिन कुछ लोग अपनी परेशानी के बारे में बहुत ज्यादा सोचते हैं. यह आम हैं. लेकिन अगर हर चीज को लेकर ज्यादा सोचे और लंबे समय तक स्ट्रेस में रहें, तो इसका असर व्यक्ति की सेहत और मेंटल हेल्थ पर पड़ सकता है. आज के समय में कई लोग एंग्जाइटी और डिप्रेशन जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. कुछ लोग डिप्रेशन से जुड़े लक्षणों को व्यक्ति की कमजोरी या नाटक समझते हैं. कई लोग इसे स्वीकार करने में डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है किसी को पता चलेगा तो लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे. यही कारण है कि बहुत से लोग समय पर मदद नहीं लेते और समस्या बढ़ती जाती है.
जहां सोशल मीडिया एक दूसरे को जोड़ता है. वहीं कई बार यह दूसरे से खुद की तुलना, सेल्फ डाउट और अकेलेपन को बढ़ावा भी मिलता है. लोग दूसरों की “हैप्पी लाइफ” देखकर खुद को कम महसूस करने लगते हैं, जिससे डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी समस्याएं होने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में डिप्रेशन के बारे में जानना और उसके बारे में लोगों को जागरूक करना बहुत जरूरी है. क्योंकि यह समस्या आम नहीं है. इससे व्यक्ति की मेंटल हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है.
वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे
वर्ल्ड मेंटल हेल्थ डे हर साल 10 अक्टूबर को पूरी दुनिया में मनाया जाता है. इस दिन का उद्देश्य मेंटल हेल्थ के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाना और मानसिक बीमारियों को लेकर स्टिग्मा को खत्म करना है. मेंटल हेल्थ भी शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही जरूरी है, लेकिन समाज में अक्सर इसे नजरअंदाज किया जाता है. इस साल यह दिन Mental health in humanitarian emergencies पर मनाया जा रहा है. यह थीम इस बात पर जोर देती है कि प्राकृतिक आपदाएं, संघर्ष, महामारी जैसी आपात स्थितियों में मेंटल हेल्थ और फिजिकलोजिस्ट स्पोर्ट का ध्यान और सेवाएं कितनी जरूरी होती हैं.
आज के समय में डिप्रेशन की बीमारी कितनी आम है?
दिल्ली के श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टीट्यूट में सीनियर कंसल्टेंट, साइकोलॉजी डॉक्टर डॉक्टर प्रशांत गोयल ने बताया कि आज के समय में डिप्रेशन मेंटल हेल्थ से जुड़ी एक गंभीर समस्या बन चुका है. नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक, भारत में लगभग 15% वयस्कों को किसी न किसी मानसिक समस्या के लिए इलाज या मदद की जरूरत है. भारत में हर 20 में से 1 व्यक्ति डिप्रेशन से पीड़ित है.अनुमान के अनुसार, यह साल 2012 में भारत में लगभग 2,58,000 से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की थी, जिनमें ज्यादातर 15 से 49 साल की उम्र के लोग थे. शहरों में रहने वाले लोग, युवा, छात्र, ऑफिस कर्मचारी और बुजुर्ग लोग इसका सबसे ज्यादा शिकार होते हैं. तेज भागती जिंदगी, काम का दबाव, लोगों से दूर रहना, बात न कर पाना, आर्थिक स्ट्रेस और तकनीक पर बढ़ती निर्भरता इसके बढ़ने का मुख्य कारण माने जा रहे हैं.
डिप्रेशन की समस्या अक्सर छुपी रहती है क्योंकि लोग इसे सिर्फ उदासी मान लेते हैं और समय पर मदद नहीं लेते, जिससे स्थिति गंभीर हो सकती है. इसलिए आज के समय में इसके लक्षणों की पहचान करना और सही समय पर एक्सपर्ट से इसके बारे में सलाह करना बहुत जरूरी है. समय पर थेरेपी, काउंसलिंग और जरूरत पड़ने पर दवाइयों का इलाज स्थिति को पूरी तरह ठीक कर सकता है. मेंटल हेल्थ की जागरूकता बढ़ाने और समाज में इसे सामान्य बीमारी के रूप में स्वीकार करने से लोग मदद लेने में हिचकिचाएंगे नहीं, इससे डिप्रेशन से उबरने की राह आसान होगी.
एंग्जाइटी से डिप्रेशन कैसे अलग है
एंग्जाइटी और डिप्रेशन दोनों ही मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या है, लेकिन इसके लक्षण और असर अलग-अलग होता है. एंग्जाइटी या स्ट्रेस में व्यक्ति को लगातार तनाव, डर और बेचैनी अक्सर बिना किसी वजह महसूस होती है. इस दौरान लोग फ्यूचर को लेकर ज्यादा सोचते हैं, नींद में परेशानी होती है, दिल की धड़कन तेज हो जाती है, हाथ-पांव ठंडे या कंपकंपाने लगते हैं और छोटी-छोटी बातों पर घबराहट महसूस होती है. एंग्जाइटी आमतौर पर किसी स्थिति या घटना के कारण बढ़ती या घटती रहती है.
वहीं डिप्रेशन में लंबे समय तक उदास रहना, थकावट और निराश महसूस करना, नींद और भूख में बदलाव होना शामिल है. गंभीर मामलों में अपने आप को नुकसान पहुंचाने के विचार भी आ सकते हैं. डिप्रेशन व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी और सामान्य काम करने की क्षमता को प्रभावित करता है. कई बार एंग्जाइटी और डिप्रेशन एक साथ भी होते हैं, इसलिए सही पहचान और समय पर इलाज बेहद जरूरी है. थेरेपी, काउंसलिंग और जरूरत पड़ने पर दवाइयों के जरिए दोनों स्थितियों को नियंत्रित किया जा सकता है.
डिप्रेशन में व्यवहार में क्या बदलाव होते हैं?
एक्सपर्ट ने बताया कि डिप्रेशन का असर सिर्फ मन पर ही नहीं बल्कि शरीर और व्यवहार दोनों पर पड़ता है. जब कोई व्यक्ति इससे जूझ रहा होता है, तो उसके अंदर उसके लगातार थकान, सिरदर्द, नींद की कमी या जरूरत से ज्यादा सोना, भूख कम लगना या कभी-कभी जरूरत से ज्यादा खाना जैसी समस्याएं दिखाई देने लगती हैं. लंबे समय तक अगर यह स्थिति बनी रहे, तो हार्ट से जुड़ी परेशानी, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी समस्याओं का खतरा भी बढ़ सकता है. व्यवहार की बात करें तो डिप्रेशन से पीड़ित व्यक्ति चिड़चिड़ा हो सकता है, उदास और चुप-चुप रहने लगता है, आत्मविश्वास कम हो जाता है और पहले जिन कामों में उसे खुशी मिलती थी उन कामों को करने में अब मन न लगना जैसे बदलाव नजर आ सकते हैं. इसके साथ ही कई बार वह अपने परिवार और दोस्तों से दूरी बनाने लगता है और समाज से कटने लगता है. किसी से बात करने का मन नहीं करता है. गंभीर स्थिति में अपने आप को नुकसान पहुंचाने जैसे विचार मन में आते हैं.
किसी को डिप्रेशन है, तो उसके आसपास का माहौल कैसा होना चाहिए?
डिप्रेशन से जूझ रहे व्यक्ति के लिए आसपास का माहौल बहुत मायने रखता है. ऐसे मरीजों को सबसे पहले समझ और साथ की जरूरत होती है. परिवार और दोस्तों को चाहिए कि वह बिना जज किए उस व्यक्ति की बातें ध्यान से सुनें और उसे यह महसूस कराएं कि वह अकेला नहीं है. घर का वातावरण तनाव और झगड़ों से दूर, शांत और पॉजिटिव होना चाहिए ताकि मरीज सेफ महसूस महसूस करे. छोटी-छोटी चीजें जैसे उसकी पसंद की गतिविधियों में शामिल करना, रोजाना टहलने के लिए प्रेरित करना और हल्की-फुल्की बातचीत करना उसे धीरे-धीरे सामान्य जीवन की ओर लौटने में मदद कर सकती हैं. डिप्रेशन के मरीज को आलोचना या मजबूरी की बजाय सहारा और धैर्य चाहिए होता है, क्योंकि यह प्रक्रिया समय लेती है. सामने वाले की हिम्मत बढ़ाएं, ताकि उसका कॉन्फिडेंस बढ़ें. साथ ही, डॉक्टर द्वारा दी गई दवाइयों और थेरेपी को नियमित रूप से जारी रखने में सहयोग देना भी बहुत जरूरी है. अगर कभी मरीज में अपने आप को नुकसान पहुंचाने जैसे विचार या बहुत ज्यादा ज्यादा उदास रहना महसुस हो, तो तुरंत एक्सपर्ट से संपर्क करना चाहिए.
क्या खान-पान भी डिप्रेशन का कारण बन सकता है?
डिप्रेशन या मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्या में सही खानपान बहुत मायने रखता है. अक्सर लोग डिप्रेशन को सिर्फ मानसिक समस्या समझते हैं, लेकिन गलत डाइट इसके जोखिम को बढ़ा या कम कर सकती है. बहुत ज्यादा ऑयली, जंक फूड, प्रोसेस्ड स्नैक्स और शुगर वाली लिक्विड चीजें दिमाग के केमिकल बैलेंस को प्रभावित करती हैं, जिससे मूड खराब हो सकता है. वहीं शरीर में विटामिन, मिनरल और ओमेगा-3 फैटी एसिड की कमी भी उदास महसूस होना और थकान बढ़ा सकती है. इसलिए मरीजों को सलाह दी जाती है कि वे ज्यादा ऑयली फूड्स, पैकेज्ड स्नैक्स, सोडा और ज्यादा कैफीन या शराब का सेवन करने से परहेज करें.
इसके बजाय ताजे फल-सब्जियां, साबुत अनाज जैसे दलिया, ओट्स, ब्राउन राइस, नट्स, ड्राई फ्रूट्स और ओमेगा-3 से भरपूर चीजें जैसे अलसी, चिया सीड्स और मछली अपने आहार में शामिल करें. सही मात्रा में पानी पीना और प्रोटीन का इंटेक करना भी बहुत जरूरी होता है. सही खान-पान से दिमाग में हैप्पी हार्मोन जैसे सेरोटोनिन और डोपामाइन का स्तर बैलेंस रहता है, मूड बेहतर होता है और डिप्रेशन से लड़ने की ताकत मिलती है. इसलिए मेंटल हेल्थ को सही बनाएं रखने के लिए सिर्फ दवा या थेरेपी ही नहीं, बल्कि बैलेंस डाइट भी बहुत जरूरी होता है.
अकेलेपन को दूर करने के लिए क्या किया जाए?
अकेलेपन और उदासी से जूझ रहे लोगों के लिए सही वातावरण बहुत जरूरी है. अकेलेपन को दूर करने के लिए सबसे पहले खुद को बिजी रहना बहुत जरूरी है. क्योंकि खाली समय में व्यक्ति कई बातों को लेकर ओवरथिंकिंग करने लगता है. अपनी पसंद की एक्टिविटी अपनाएं जैसे कि पढ़ाई, लिखाई, पेंटिंग, म्यूजिक सुनना या गाना, योग या हल्की एक्सरसाइज में समय बिताना मेंटल हेल्थ लिए बहुत मददगार होता है. रोजाना फिजिकली एक्टिव रहने से दिमाग में हैप्पी हार्मोन यानी सेरोटोनिन और डोपामिन का स्तर बढ़ता है, जिससे मूड बेहतर रहता है. परिवार और दोस्तों से बातचीत करें, फोन या वीडियो कॉल करें, या नए लोगों से थोड़ी बातचीत करें. किसी ग्रुप का हिस्सा बनें इससे भी अकेलेपन को कम करने और कॉन्फिडेंस को बढ़ाने में मदद मिल सकती है. मेडिटेशन और गहरी सांस लेने जैसी कई तकनीक मेंटल स्ट्रेस को कम करने में मदद कर सकती है. इसके साथ ही रोजाना 7 से 8 घंटे की नींद जरूर लें.
डिप्रेशन का इलाज किस तरह किया जाता है?
डिप्रेशन एक गंभीर समस्या है, इसलिए समय रहते इसका इलाज करवाना बहुत जरूरी है. जब कोई व्यक्ति लगातार उदास और थकान महसूस कर रहा है. इसके साथ ही नेगेटिव विचार, किसी काम में मन न लगना, नींद और भूख में बदलाव दिखना जैसे लक्षण अगर लंबे समय तक बने रहें और वह व्यक्ति खुद इन्हें मैनेज न कर पाए, तो उसे थेरेपी या दवाइयों की जरूरत पड़ सकती है. शुरुआती और हल्की मामलों में काउंसलिंग या टॉक थेरेपी व्यक्ति के लिए असरदार होती है, जिसमें मरीज अपनी समस्याओं और फीलिंग्स के बारे में खुलकर बात करता है. लेकिन अगर लक्षण ज्यादा बढ़ जाएं और उसके कारण रोजमर्रा के काम प्रभावित होने लगे या अपने आप या दूसरों को नुकसान पहुंचाने के विचार मन में आने लगें, तो एंटीडिप्रेसेंट दवाइयां दी जाती हैं. इलाज का तरीका हर मरीज की स्थिति के हिसाब से तय होता है, कभी सिर्फ थेरेपी से फायदा होता है, तो कभी दवा और थेरेपी दोनों की जरूरत पड़ी है. परिवार और दोस्तों का सहयोग भी मरीज को बेहतर करने में अहम भूमिका निभाता है. सबसे जरूरी बात यह है कि डिप्रेशन कोई कमजोरी नहीं बल्कि एक समस्या है जिसका समय पर एक्सपर्ट से बात कर इलाज जरूरी होता है.
डिप्रेशन के बारे में क्यों जानना जरूरी है?
डिप्रेशन के बारे में जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह सिर्फ मन का तनाव नहीं बल्कि यह मेंटल हेल्थ से जुड़ी एक गंभीर समस्या है, जो किसी की भी जिंदगी पर गहरा प्रभाव डाल सकती है. अक्सर लोग उदास महसूस करने और डिप्रेशन में फर्क नहीं समझ पाते और समय पर इलाज नहीं करा पाते, जिससे स्थिति और बिगड़ जाती है. ऐसे में ऊपर बताए गई डिप्रेशन के लक्षणों को पहचान सही समय पर इलाज शुरू करवाना जरूरी है. यह जानकारी न सिर्फ मरीज बल्कि उसके परिवार और दोस्तों के लिए भी जरूरी है, ताकि वे सही समय पर उसका साथ दे सकें और व्यक्ति की मदद कर पाएं. डिप्रेशन के बारे में जागरूकता बढ़ने से लोग इसे कमजोरी नहीं बल्कि इलाज योग्य बीमारी समझेंगे और मदद लेने में हिचकिचाएंगे नहीं. हमारे नजरिए से यह समझना भी जरूरी है कि समय पर पहचान और इलाज से डिप्रेशन पूरी तरह ठीक हो सकता है, लेकिन देर होने पर यह गंभीर समस्या बन सकती है. इसलिए डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ से जुड़ी दूसरी समस्याओं के बारे में लोगों को जागरूक होना और सामने वाले व्यक्ति को समझना और मदद करना जरूरी है.